अमिताभ पाण्डेय
बीमारियां बता कर नहीं आती। बीमारियों का दुष्प्रभाव केवल किसी एक मरीज पर तो सीधा दिखाई देता है लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से इसका असर मरीज के पूरे परिवार के साथ ही समाज पर भी होता है। घर में कोई एक सदस्य किसी बीमारी से पीडित होे तो परिवार के सभी लोग उसको शीघ्र स्वस्थ करने में जुट जाते हैं। ऐसे में बीमार मरीज को खुद अपना वह कामकाज तो बदं करना ही होता है जिससे उसकी कमाई होती है। उसके साथ ही घर परिवार के जो दूसरे लोग अपना अपना काम करते हेैं वे अपने काम को छोडकर पूरी तरह मरीज की सेवा में जुट जाते हैं। इससे मरीज के साथ ही घर परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा की जाने वाली कमाई कम हो जाती है। घर में किसी एक के बीमार हो जाने से केवल उसके द्वारा किये जाने वाला काम ही नहीं बल्कि उसके परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा किये जाने वाले काम और कमाई पर विपरीत प्रभाव होता है। एक व्यक्ति का बीमार होना केवल किसी एक घर और परिवार नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए नुकसानदेह होता है । बीमारी के कारण सामाजिक और आर्थिक दोनों ही व्यवस्थाएं प्रभावित होती है।

यदि घर में बीमारी व्यक्ति किसी संक्रामक बीमारी से पीडित है तो ऐसी बीमारी घर परिवार के सदस्यों को फैलने की आशंका  अधिक होती है। टी बी ऐसी ही बीमारी है जिसके कीटाणु     हवा के माध्यम से स्वस्थ व्यक्ति को भी संक्रमित कर सकते है। यह ऐसी बीमारी है जिसका संक्रमण हवा के माध्यम से शिशु,बच्चों,महिलाओं, पुरूषों सभी को हो सकता है। जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है , जो शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं उन्हें टी बी की बीमारी होने की संभावना अपेक्षाकृत अधिक होती है। जो इस बीमारी से पीडित होते हेै उनके वे धीरे धीरे कामकाज करने में परेशानी का अनुभव करते हैं। यदि समय पर उपचार शुरू न किया जाये तो इस बीमारी का मरीज जल्द ही बिस्तर पकड लेता है और कामकाज करने लायक नहीं रहता । ऐसे में उसको होने वाली आय मिलना बंद हो जाती है। उसका परिवार आर्थिक परेशानी में आ जाता है। टी बी की बीमारी को आज भी कई लोग छूआछूत की बीमारी मानते है और मरीज के पास आने में डरते हैं। इस बीमारी के मरीज को समाज में अपमान की निगाह से देखा जाता है। कई बार तो यह भी देखा गया है कि टी बी मरीज के घर परिवार वाले भी उसका अपमान करते हैं और बीमारी से लडने में उसका सहयोग नही करते । शायद यही कारण है कि अपना रोजगार बंद हो जाने और समाज में अपमान से बचने के लिए लोग टी बी जैसी गंभीर बीमारी को छुपाते हैं। बीमारी को छुपाने वाले लोग उपचार न करवा कर टी बी के कीटाणु हवा में फैलाते हुए इधर उधर घूमते रहते हैं। इससे स्वस्थ लोगों को भी टी बी हो जाती है।

राष्टीय टी बी अनुसंधान संस्थान चैन्नई द्वारा किये गये विभिन्न सर्वेक्षण उपंरात तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रतिदिन 1200 से अधिक लोग टी बी की बीमारी के कारण मर रहे हैं। हमारे देश में हर दो मिनिट में 3 लोगों की मौत टी बी के कारण हो रही है। हर साल टी बी के कारण 15 से 55 वर्ष की आयु के बीच के 3 लाख से ज्यादा लोगों की मौत टी बी के कारण हो जाती है। मरने वालों में ज्यादातर वे लोग होते हैं जो किसी रोजगार,काम-धंधें के माध्यम से अपने परिवार का जीवनयापन करते हेेैं। इस बीमारी के कारण मरीजों के प्रतिवर्ष लगभग 10 करोड कार्य दिवस बेकार हो जाते हैं। बीमारी की अवधि में वे न काम कर पाते हैं और न ही उनकी कमाई हो पाती है। हर साल टी बी के कारण जो लोग मारे जाते हैं उनकी वजह से 130 करोड कार्यदिवस का नुकसान देश को होता है। टी बी के कारण लोग काम नहीं कर पाते इससे देश का विकास बाधित होता है। टी बी की वजह से मरीज की सामाजिक प्रतिष्ठा में भी कमी आती है। जिन परिवारों में किसी को टी बी की बीमारी होती है वहां 10 में से एक बच्चा स्कूल जाना छोड देता है। ऐसे बच्चे घर में रहकर टी बी से पीडित माता पिता की देखरेख करते हैं। जिन घरों में पिता को टी बी की बीमारी हो जाती है वहां घर का एक बच्चा अपने परिवार के भरण पोषण के लिए काम करने जाने लगता है। आंकडे यह बताते हैं कि हर साल भारत में लगभग 3 लाख बच्चे अपनी टी बी से पीडित माता पिता की देखरेख करने के लिए स्कूल जाना छोड देते हैं।
इस बारे में मध्यप्रदेश के वरिष्ठ क्षय रोग चिकित्सक डा राजेन्द्र अग्रवाल का कहना है कि टी बी ऐसी बीमारी है जिसकों निरतंर उपचार से ठीक किया जा सकता है। जो मरीज बीच में दवा लेना बंद कर देते हैं उनके कारण टी बी अधिक फैलती है। डा अग्रवाल के अनुसार राष्टीय क्षय नियंत्रण कार्यक्रम के माध्यम से लोगों को क्षय रोग का मुफत उपचार उपलब्ध करवाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि टी बी के बारे में जागरूकता अभियान को और अधिक प्रभावी तरीके से आम जनता तक पहुॅचाये जाने की जरूरत है।
यहां यह बताना जरूरी होगा कि भारत में विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी संगठन टी बी की रोकथाम के लिए प्रयास कर रहे हैं। टी बी के उपचार पर हमारे देश में हर साल 13000 करोड रूपये से अधिक की राशि खर्च कर दी जाती है। हम कह सकते है। कि यदि टी बी की बीमारी को पूरी तरह खत्म कर दिया जाये तो इसके उपचार पर खर्च होने वाली 13000 करोड रूपये की राशि का उपयोग समाज और देश के लिये बेहतर तरीके से हो सकता हेै।

 

 

 

Source : लेखक स्वतत्रं पत्रकार हैं । संपर्क: 9424466269